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अंडमानी हिन्दी (हिंदुस्तानी) का इतिहास 166 वर्ष पुराना है । 1857 के भारतीय विद्रोह (Sepoy mutiny) में भाग लेने वाले स्वंतंत्रता सेनानियों में से 200 देशभक्तों को देशभक्ति की सज़ा सुनाकर कालपानी(अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह ) भेजा गया। ये क़ैदी देश के विभिन्न प्रांतों से थे जैसे कि कोई पंजाब से तो कोई बंगाल, इसी प्रकार समय समय पर अन्य राज्यों से भी क़ैदियों को अंडमान भेजा जाता रहा है । चूँकि ये क़ैदी विभिन्न प्रांतों से थे और उनकी मातृभाषा एकदूसरे से बिलकुल अलग थी, कोई पंजाबी बोलता था कोई बांग्ला,तो कोई तमिल या फिर तेलुगू । इन अनेकोनेक भाषा के चलते इन क़ैदियों को एकदूसरे से संपर्क साधने के लिए किसी एक भाषा की ज़रूरत पड़ी ,तो इन्होंने अंडमानी हिन्दी का इजात किया ।अगर कोई क़ैदी बांग्ला बोलता तो तमिल भाषी उस भाषा को नहीं समझ पाता अतः उन्होंने एक ऐसी भाषा या यों कहे बोली का निर्माण किया जो सभी क़ैदी समझ और बोल पाते थे फलस्वरूप अंडमानी हिन्दी का उदय हुआ । सन् 1881 में अंडमान में शिक्षा के आरंभ के साथ साथ इस बोली को और भी बढ़ावा मिला और लोग इस बोली का प्रयोग अपने दैनिक कार्यकलापों में करने लगे। इसी कारण अंडमान में रह रहे प्रत्येक भाषा-भाषी के लोग अंडमानी हिन्दी समझते एवं बोलते हैं । राष्ट्रीय पाठ्यचार्य रूपरेखा (NCF-2005) में मातृभाषा एवं क्षेत्रीय भाषा को पठन-पाठन का विषय बनाने पर विशेष बल दिया गया है । अंडमानी हिन्दी(हिंदुस्तानी) पूरे द्वीप समूह के विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम है अर्थात् यह NCF -2005 की रूपरेखा का अनुसरण कर इस बोली को शिक्षा का माध्यम बनाने में सफल रहा है। अंडमानी हिन्दी की व्युत्पति की ओर ध्यान दें तो हम पाते हैं कि इसमें अनेकोनेक कारक है जिससे अंडमानी हिन्दी का उदय हुआ जिसमें ख़ासकर भाषा का अनुकरण ,देवनागरी लिपि अज्ञानता,भाषा सीखने की कठोर नियम से मुक्ति आदि तथ्य शामिल है ।
"अंडमानी हिन्दी(हिंदुस्तानी) की व्युत्पति ", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.8, Issue 11, page no.435 - 445, November-2023, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2311059.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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