IJRTI
International Journal for Research Trends and Innovation
International Peer Reviewed & Refereed Journals, Open Access Journal
ISSN Approved Journal No: 2456-3315 | Impact factor: 8.14 | ESTD Year: 2016
Scholarly open access journals, Peer-reviewed, and Refereed Journals, Impact factor 8.14 (Calculate by google scholar and Semantic Scholar | AI-Powered Research Tool) , Multidisciplinary, Monthly, Indexing in all major database & Metadata, Citation Generator, Digital Object Identifier(DOI)

Call For Paper

For Authors

Forms / Download

Published Issue Details

Editorial Board

Other IMP Links

Facts & Figure

Impact Factor : 8.14

Issue per Year : 12

Volume Published : 10

Issue Published : 113

Article Submitted : 18245

Article Published : 7789

Total Authors : 20583

Total Reviewer : 750

Total Countries : 142

Indexing Partner

Licence

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International License
Published Paper Details
Paper Title: चम्पारण किसान आन्दोलन में गांधीजी का योगदान: एक अध्ययन
Authors Name: Kailash Chandra
Download E-Certificate: Download
Author Reg. ID:
IJRTI_187160
Published Paper Id: IJRTI2303132
Published In: Volume 8 Issue 3, March-2023
DOI:
Abstract: किसी भी कार्य को करने के लिए हिम्मत, लगन, दृढ निष्चय की अति आवष्यकता होती है तभी जाकर कामयाबी हासिल होती है। भारत में अंग्रेजी शासनकाल में भारतीय किसानों और आम जन की दयनीय स्थिति थी। ऐसी स्थिति में चम्पारण मे संघर्ष कर रहें किसानों के लिए एक व्यक्ति ने ऐसे ही मार्गदर्शक का कार्य किया, वह व्यक्ति थे मोहनदास कर्मचंद गाँधी। सन् 1840 में यूरोपीय कोठीवालों ने अधिक लाभ कमाने के लिए नील की खेती करना फायदेमंद समझा क्योंकि उस समय चीनी का व्यवसाय मंदी की ओर था। यूरोपियों ने तब रामनगर और बेतिया राज्य से चम्पारण में अस्थायी अथवा स्थायी पट्टों की जमीने लेकर अपनी कोठियाँ स्थापित कर, नील की खेती शुरू की। सबसे पहले सन् 1813 में बारा में नील की कोठी खोली गई। अंग्रेज व्यापारियों (निलहे साहब) को राज्य का ऋण चुकाने के लिए राज्य को कुछ तय मालगुजारी देनी होती थी। उत्तर बिहार में दो तरीकों से नील की खेती करवायी जाती थी। पहला तरीका तो यह था कि निलहे साहब अपनी देखरेख में रैयतों से उनके ही हल-बैल की सहायता से खेती करवाते थे और उस समय के प्रचलित कृषि उपकरण स्वयं के लिए रख लेते थे। रैयतों को उनके परिश्रम के बदले में बहुत ही कम मेहनताना दिया जाता था। रैयतों का जीवन निलहे साहबों के गुलामों की तरह हो गया था। चम्पारण में सबसे अधिक प्रचलित दुसरा तरीका तीन काठिया था। इसमें किसान को लम्बी अवधि तक 20, 25 अथवा 30 वर्ष तक कोठी के खेत में अथवा प्रति बीघा खेत के तीन चौथाई (कट्ठें) में नील उपजना पड़ता था।(3) पहले तो खेती का क्षेत्र पाँच चौथाई में रहता था किन्तु 1867 में इसे चार चौथाई और उसके बाद 1868 में तीन चौथाई कर दिया गया। इसी कारण से इस प्रथा का नाम तीन काठिया हो गया। साटा (किसान और जमींदार के बीच समझौते का दस्तावेज) के अन्तर्गत किसान को नील की खेती करनी होती थी और किसान यह लिखकर देता था कि वह हर साल एक निश्चित रकबे में नील की खेती करेगा और बदले में उसे एक निश्चित रकम पेशगी मिलेगी। केवल बीज कोठीदार देता था बाकि का सारा कार्य, खेत की बुआई से लेकर फसल की कटाई तक, किसान अपने खर्चे से करता था। एक बीघा खेत में उत्पन्न नील का कितना दाम किसान को दिया जाना है यह साटे में पहले ही तय होता था। जुताई के समय नील के दाम का कुछ हिस्सा किसान को बिना ब्याज के पेशगी के रूप में दिया जाता था किन्तु यह हिस्सा किसान को नगद ना देकर उसके लगान खाते में जमा कर दिया जाता था। नील के दामों को कई वर्षों तक बढाया ही नहीं जाता था जबकि अन्य चीजों के दाम कई गुना बढ़ जाते थे। सबसे अधिक लाभ निलहे को होता था। कभी-कभी तो किसानों को बहुत कम मजदूरी देकर अथवा बिना मजदूरी दिये ही काम करवा लिया जाता था। नील की पैदावार ना होने पर किसान से भारी जुर्माना लिया जाता था। किसानों को स्वयं की जमीन में खेती करने का समय ही नहीं मिल पाता था। यदि कोई किसान इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाता तो उसे कठोरता से दबा दिया जाता था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिसम्बर, 1916 के 31वें लखनऊ अधिवेशन में गाँधीजी का ध्यान चम्पारण समस्या की ओर आकृष्ट हुआ। कांग्रेस अधिवेशन के दौरान चम्पारण के राजकुमार शुक्ल, जो कि बिहार के राजनीतिक एवं किसान नेता थे एवं जिन्हें व्यक्तिगत तौर पर निलहें साहबों के अत्याचारों का अनुभव था, ने गाँधीजी को चम्पारण की स्थिति से अवगत करवाते हुए उन्हें चम्पारण आने के लिए कहा। अधिवेशन में चम्पारण के किसानों और निलहे साहबों के संबंध पर भी एक प्रस्ताव पारित होना था। कांग्रेस ने यह प्रस्ताव पारित कर दिया और गांधीजी ने शीघ्र ही चम्पारण आने का वचन दिया। 7 अप्रैल, 1917 को गाँधीजी ने राजकुमार शुक्ल को अकेले ही कलकत्ता आने के लिए लिखा। राजकुमार शुक्ल कलकत्ता आये और गाँधीजी उनके साथ 9 अपै्रल 1917 को पटना पहुंचे। पटना में मजहरूलहक नामक व्यक्ति, जो कि गाँधीजी को लंदन से जानते थे, उन्हें अपने यहाँ ले गये। यहाँ से गाँधीजी गाड़ी से मुजफ्फरपुर पंहुचे जहाँ कॉलेज के प्राध्यापक जे.बी. कृपलानी ने गाँधीजी का स्वागत किया। मुजफ्फरपुर के एक रईस श्री श्यामनन्दन सहाय गाँधीजी को अपने घर ले गये। यहाँ पुरी के राजेन्द्र प्रसाद, दरभंगाा से ब्रजकिशोर बाबू तथा यहीं के स्थानीय वकील गाँधीजी से मिले। गाँधीजी ने यहीं से अपनी कार्ययोजना की शुरूआत की। क्योंकि गाँधीजी को यहाँ की स्थानीय भाषा को समझने में कठिनाई होती थी अतः उन्होनें अपने लिए द्विभाषीये की मांग की। 11 अप्रैल 1917 को गाँधीजी ने प्लान्टर्स एसोसियेशन के सचिव, विल्सन को अपने चम्पारण आने का कारण बताया। विल्सन ने गाँधीजी को व्यक्तिगत रूप से मदद करने का भरोसा दिलाया।
Keywords: .
Cite Article: "चम्पारण किसान आन्दोलन में गांधीजी का योगदान: एक अध्ययन", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.8, Issue 3, page no.748 - 750, March-2023, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2303132.pdf
Downloads: 000205135
ISSN: 2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
An International Scholarly Open Access Journal, Peer-Reviewed, Refereed Journal Impact Factor 8.14 Calculate by Google Scholar and Semantic Scholar | AI-Powered Research Tool, Multidisciplinary, Monthly, Multilanguage Journal Indexing in All Major Database & Metadata, Citation Generator
Publication Details: Published Paper ID: IJRTI2303132
Registration ID:187160
Published In: Volume 8 Issue 3, March-2023
DOI (Digital Object Identifier):
Page No: 748 - 750
Country: Jhunjhunu, State - Rajasthan, India
Research Area: Arts
Publisher : IJ Publication
Published Paper URL : https://www.ijrti.org/viewpaperforall?paper=IJRTI2303132
Published Paper PDF: https://www.ijrti.org/papers/IJRTI2303132
Share Article:

Click Here to Download This Article

Article Preview
Click Here to Download This Article

Major Indexing from www.ijrti.org
Google Scholar ResearcherID Thomson Reuters Mendeley : reference manager Academia.edu
arXiv.org : cornell university library Research Gate CiteSeerX DOAJ : Directory of Open Access Journals
DRJI Index Copernicus International Scribd DocStoc

ISSN Details

ISSN: 2456-3315
Impact Factor: 8.14 and ISSN APPROVED, Journal Starting Year (ESTD) : 2016

DOI (A digital object identifier)


Providing A digital object identifier by DOI.ONE
How to Get DOI?

Conference

Open Access License Policy

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial 4.0 International License

Creative Commons License This material is Open Knowledge This material is Open Data This material is Open Content

Important Details

Join RMS/Earn 300

IJRTI

WhatsApp
Click Here

Indexing Partner