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उन्नीसवीं शताब्दी न केवल भारतीय महिलाओं के लिए बल्कि राजस्थान की महिलाओं के लिए भी नव जागरण का काल था। इस समय भारत में महिलाओं के सुधार और जागरण का मुद्दा प्रमुख बन गया था। इस काल में अनेक समाज सुधारक हुए जिन्होंने महिलाओं की दशा को सुधारने की दिशा में कार्य किया। इसी कड़ी में महिलाओं ने अपने विवेक को प्रज्जवलित करके अपने अधिकारों की लड़ाई भी लड़ी। उन्होंने संगठन बनाए, पुस्तकें लिखी और जनजागरण का कार्य किया।राष्ट्रीय स्तर में जहां सावित्रीबाई फुले, रमाबाई रानाडे, ताराबाई शिंदे, एनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू, कमला चट्टोपाध्याय, कस्तूरबा, विजयलक्ष्मी पंडित जैसी महिलाएं राष्ट्रीय आंदोलन और राजनीतिक जागरण में अपनी भूमिका निभा रही थी।
राजस्थान में नारायणी देवी वर्मा, किशोरी देवी, जानकी देवी बजाज, इंदिरा देवी, विद्या देवी, सरस्वती बोहरा, शांति देवी, सुशील त्रिपाठी, शांति गुप्ता, शारदा देवी, सुशीला गोयल, धापी दादी आदि ने राजस्थान के राजनीतिक जागरण में योगदान दिया और तत्कालीन रियासतों में हो रहे शोषण का सक्रिय प्रतिरोध किया।ये महिला सुधारक तत्कालीन सुधारक महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस आदि की विचारधारा से प्रभावित थी। किसान आंदोलन, प्रजामंडल आंदोलन, हरिजन उद्धार, खादी ग्रामोद्योग, शिक्षा तथा समाज सुधार आदि क्षेत्रों में इनका योगदान ऐतिहासिक रहा है।इतिहास लेखन की सबाल्टर्न धारा के अंतर्गत महिलाओं के इतिहास पर लिखा जाने लगा।
विष्व स्तर पर नारीवादी आंदोलन के फलस्वरूप नारीवादी इतिहास लेखन के क्षेत्र में शोध और पुस्तक लेखन का कार्य होने लगा।भारत में स्वतंत्रता के पश्चात महिलाओं की स्थिति और भूमिका के परिप्रेक्ष्य से इतिहास लिखना आरंभ हुआ। प्राचीन भारत में महिलाओं की भूमिका साहित्यिक स्रोतों में समझने को मिलती हैं।प्राचीन भारतीय संस्कृति में स्त्री व पुरुष को गाड़ी के दो पहियों की तरह माना गया है। इसी दृष्टि से स्त्री को पुरूष की अर्धांगनी कहा गया है।शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि ष्पत्नी पुरूष की आत्मा का आधा भाग है। ’’उसी प्रकार भारतीय संस्कृति में माता को ’’जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसीश् अर्थात माता और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। मनुस्मृति में कहा है कि ’’यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’’ अर्थात जिस स्थान पर महिला की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। वैदिक काल के पश्चात भारतीय महिला की स्थिति में परिवर्तन आया।
गुप्तकाल और उसके बाद के काल में महिलाओं की स्थिति का पतन हुआ और महिलाओं पर बंधन धोपे जाने लगें। मध्यकालीन भारत में बाहरी आक्रमण और रियासतों के सामंती व्यवस्था और पुरातनपंथी विचारों के कारण महिलाओं की स्थिति पुरुषों से कमज़ोर होने लगी। यह विचारणीय तथ्य है कि पूर्व वैदिक काल में महिलाओं कि स्थिति अनुकूल थी। भारत में सीता, सावित्री, द्रौपदी, दमयन्ती, गार्गी, मैत्रेयी जैसी श्रेष्ठ महिलायें हुईं। ऐतिहासिक काल और मध्यकालीन में महिलाओं की कमज़ोर स्थिति पर आधुनिक भारत में अध्ययन हुआ और सुधार की दिशा में कार्य भी आरम्भ हुए।
Keywords:
राजस्थान में महिला सुधारक, जन चेतना, रचनात्मक कार्य, राजनीतिक जागरण, महिलाएं, महिलाओं की भूमिका, महिला सुधारक, नारीवादी आंदोलन।qèkkjd] tu psruk] jpukRed dk;Z] jktuhfrd tkxj.k] efgyk,a] efgykvksa dh Hkwfedk] efgyk lqèkkjd] ukjhoknh vkanksyuA
Cite Article:
"राजनैतिक जागरण में महिलाओं का योगदान राजस्थान के संदर्भ में ऐतिहासिक अवलोकन", International Journal of Science & Engineering Development Research (www.ijrti.org), ISSN:2455-2631, Vol.9, Issue 6, page no.511 - 514, June-2024, Available :http://www.ijrti.org/papers/IJRTI2406073.pdf
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ISSN:
2456-3315 | IMPACT FACTOR: 8.14 Calculated By Google Scholar| ESTD YEAR: 2016
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